Wednesday, April 24, 2019

लोकसभा चुनाव 2019: 'इस चुनाव के बाद कन्हैया का कोई ठिकाना नहीं होगा': तनवीर हसन

लेकिन ये लोकसभा सीट तब से चर्चा में है जबसे यहां से जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार के चुनाव लड़ने की ख़बरें आई थीं.

एक समय ऐसा आया जब ख़बरें आईं कि बेगूसराय में वह महागठबंधन के उम्मीदवार हो सकते हैं.

लेकिन महागठबंधन और कन्हैया की पार्टी सीपीआई के बीच दाल नहीं गली.

इसके बाद वह सीपीआई उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे और महागठबंधन ने इसी सीट पर दिग्गज राजद नेता तनवीर हसन को टिकट दिया.

बीबीसी ने तनवीर हसन के साथ ख़ास बातचीत में इस सीट के जातिगत समीकरण और राजनीतिक भविष्य से जुड़े सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की है.

बेगूसराय लोकसभा सीट इतनी चर्चा में क्यों है?

देखिए, मीडिया ही किसी सीट को चर्चा में लाता है और उसे चर्चा से गायब भी कर देता है. मीडिया ऊपर से ही इस सीट को चर्चा में बनाए हुए है. चुनाव के दौरान तो हर सीट चर्चा में होती है. हर जगह चुनाव का संघर्ष है. बेगुसराय के मामले में बस इतना ही कहा जा सकता है कि यहां 2014 के चुनाव में संघर्ष किया गया था. स्थिति बिलकुल ऐसी ही थी.

क्या कन्हैया कुमार ने आपकी नींद उड़ा दी है?
हमारी नींद न कन्हैया ने उड़ाई है और न किसी और ने उड़ाई है. 2014 के चुनाव में भी हमने संघर्ष किया था. चुनाव में तो काम करना ही पड़ता है. तब कन्हैया नहीं थे लेकिन उनकी पार्टी के उम्मीदवार तो तब भी थे. ऐसे में कन्हैया रहें या पार्टी का दूसरा उम्मीदवार रहे, लड़ाई तो समान है. कन्हैया के नाम पर उनके समर्थकों वाले मतदान का अनुमान कम है. क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टी अपने बेस वोट पर चुनाव लड़ रही है और यही वोट उन्हें पिछले चुनाव में भी मिला था.

बीते पांच सालों से केंद्र में एक मजबूत सरकार है, वहां जब विपक्ष की आवाज़ दबती हुई दिखाई दी तो एक युवा ने अपनी आवाज़ से इस तरह मोर्चा लेकर रखा. उस आवाज़ को आप लोगों ने खुद से अलग क्यों कर दिया?
हमनें इस आवाज़ को अपने आप से अलग नहीं किया. गठबंधन की बुनियाद पिछले चुनाव में मिले हुए मतों के आधार पर बनती है. सीट का बंटवारा भी उसी तरह होता है. जब हमारे गठबंधन मे ये तय हुआ कि राजद का इस सीट पर क्लेम है. कम्युनिस्ट पार्टी इस सीट पर तीसरे नंबर पर आई थी. राजद से दो लाख वोट कम मिले थे. इस बुनियाद पर ये सीट राजद की बनती है और राजद लड़ेगी.

साझा चुनाव तो यहां पर हुआ नहीं. उन्होंने सभी जगहों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं. अब पिछले चुनाव में भी वह साझा नहीं थे और जदयू से मिले हुए थे. इस वजह से भी स्थानीय राजनीति में उनकी मंशा ठीक नहीं रहती है.

तीसरी बात ये है कि मीडिया के द्वारा सिर्फ ये सवाल क्यों है कि वो क्यों नहीं लड़े और वो क्यों नहीं लड़ सकते थे, वो क्यों हटाए गए. ये तो बेहद पक्षपातपूर्ण सवाल है.

एक मजबूत सरकार में जब विपक्ष की आवाज़ कमज़ोर पड़ रही थी तो एक युवा ने उस आवाज़ को मजबूत करने की कोशिश की. बस इसी वजह से ये सवाल पूछा जाता है.
नहीं, विपक्ष की आवाज़ मजबूत करने की कोई कोशिश नहीं की गई. विपक्ष भी गूंगा नहीं था. विपक्ष ने अपने धर्म को निभाया था. ये एक विवादास्पद मामले में चर्चा में आए और उसी मामले से मीडिया ने इन्हें कैच किया. मीडिया पता नहीं क्यों कुछ पहचानी शक्लों को ही प्रोजेक्ट करता है.

मैंने सही तब भी नहीं माना था. तब भी इसकी निंदा की थी. लेकिन सवाल ये नहीं है. सवाल ये है कि कुछ न कुछ विवाद हुआ तब न मीडिया ने उसको हाईलाइट किया. मीडिया ने उनके पक्ष और विपक्ष दोनों में उनको हाईलाइट किया. ऐसे में हाईलाइट का केंद्र तो वही बने. मतलब यही वजह बनी.

अब तो अरुण जेटली भी टुकड़े-टुकड़े गैंग कहते हैं. क्या आप भी टुकड़े-टुकड़े गैंग का जो दाग या आरोप है, उसे आप सही मानते हैं?
टुकड़े-टुकड़े गैंग है या क्या है, जेटली के आरोप को सही मानना या न मानना अलग चीज़ है. हमारी मान्यता ये है कि अगर किसी भी तरह के ऐसे मामले में बीजेपी सरकार पक्षपात करती है और राष्ट्रद्रोह और राष्ट्रप्रेम का सर्टिफ़िकेट बांटती है तो इसका हक़ उन्हें नहीं है.

आपको नहीं लगता है कि कन्हैया भी उसी वोटबैंक को अपील कर रहे हैं जिस वोट बैंक को आप अपील कर रहे हैं.
उनका भी काम है अपील करना. अभी तक उनकी अपील पर जब फॉलोइंग हो जाएगी तब न उसको देखा जाएगा. अभी तक उसकी फॉलोइंग नज़र नहीं आती है.

अब इसके लिए दोषी कौन हो सकता है. मैं तो नहीं हूं. पार्टी के पिछले प्रदर्शन के आधार पर मुझे उम्मीदवार बनाया गया. इस पर कोशिश की जा सकती है. लेकिन उन्होंने सशर्त कोशिश की कि ये चाहिए और वो चाहिए. ऐसी हालत में गठबंधन के दूसरे अन्य घटकों का रुख अलग था जिनसे वो लोग सहमत नहीं हुए.

क्या आप ये स्वीकार करते हैं कि आपके और कन्हैया के अलग होने से गिरिराज खेमे में खुशी है?
चुनाव हम भी लड़ रहे हैं और वह भी लड़ रहे हैं. ऐसे में किसके यहां खुशी है और किसके यहां ग़म है, वो अलग बात है. ये तो एक धारणा की बात है कि कहां खुशी है. और, कौन जीतेगा तो पाकिस्तान में फुलझड़ी छूटेगी. ये तो धारणा की बात है. और इसी के आधार पर ये सब कहा जा रहा है.

आपका दुश्मन गिरिराज और कन्हैया में से कौन है तनवीर जी? क्योंकि गिरिराज, कन्हैया और आपकी अपनी विचारधारा है, ऐसे में कौन सी विचारधारा आपके ख़िलाफ़ है?
आप यही तो पूछेंगे न कि जब आप दोनों एक विचारधारा के आस-पास हैं तो साथ क्यों नहीं हुए. क्योंकि आप बार बार एक ही जैसा सवाल पूछ रहे हैं.

नहीं, ऐसा नहीं है, क्योंकि आपके मतदाताओं को कहीं न कहीं लगता है कि कुछ गड़बड़ हुआ है.
ये तो हमें भी लगता है कि देशभर में बड़े पैमाने पर जो मोर्चेबाजी होनी चाहिए थी, उसमें कहीं न कहीं चूक हुई है. लेकिन बिहार की मोर्चेबाजी में हमारे मोर्चे के साथ जो घटक हैं, उनके साथ एक बड़ा आकार है. और यही बात साबित करती है कि बिहार में ये चूक नहीं हुई है.

और व्यापकता लाने के लिए कहीं न कहीं समझौता करने की भी ज़रूरत होती है. ऐसे में जब वामपंथ ने सब मिलाकर 16-17 सीट पर दावेदारी की तो वो कहीं से मुनासिब नहीं था. और वो उस दावेदारी पर अड़े रहे. ऐसी हालत में आप बताइए कि कौन से गठबंधन में ऐसी शर्त पर दावेदारी मान ली जाए जिससे कि किसी एक व्यक्ति के लिए पूरी पार्टी कहे कि वो सीट तो वह ही लेगी.

और अगर मान भी लिया जाए कि हो जाती तो उस समय तो कोशिश की नहीं गई. उनकी तरफ़ से कोशिश नहीं की गई. हमारी तरफ़ से कोशिश की गई. हमने ऑफ़र भी की. हमने माले के लिए एक सीट छोड़ी भी. क्योंकि जनसमर्थन के लिहाज़ से जो उपयुक्त पार्टी है वो माले है और उसका कहीं कहीं जनसमर्थन है. हमने अपने आप से उनके लिए सीट छोड़ दिया.

Thursday, April 18, 2019

लोकसभा चुनाव 2019: पीएम मोदी की जाति सवर्ण से बनी थी ओबीसी?

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर ख़ुद को पिछड़ी जाति का बताया है.

महाराष्ट्र के सोलापुर में एक रैली के दौरान मोदी ने कहा कि 'पिछड़ा वर्ग की वजह से उन्हें निशाना बनाया जा रहा है.'

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के 'चौकीदार चोर है' और 'सभी चोरों का सरनेम मोदी है' जैसे बयानों को लेकर मोदी ने कहा, "पिछड़ा होने की वजह से, हम पिछड़ों को अनेक बार ऐसी परेशानियां झेलनी पड़ी हैं. अनेक बार कांग्रेस और उसके साथियों ने मेरी हैसियत बताने वाली, मेरी जाति बताने वाली बातें कही हैं."

मोदी ने कहा, "कांग्रेस के नामदार ने पहले चौकीदारों को चोर कहा, जब ये चला नहीं तो अब कह रहे हैं कि जिसका भी नाम मोदी है वो सारे चोर क्यों हैं?"

उन्होंने कहा, "लेकिन वो इस बार इससे भी आगे बढ़ गए हैं और पूरे पिछड़े समाज को ही चोर कहने लगे हैं."

2014 में जब पहली बार नरेंद्र मोदी ने ख़ुद को पिछड़ा वर्ग का बताया था तो इस पर ख़ासा विवाद हुआ था.

तब कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि मोदी ने सत्ता में आने के बाद अपनी जाति को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल करा दिया था.

हालाँकि गुजरात सरकार ने सफ़ाई में कहा था कि घांची समाज को 1994 से गुजरात में ओबीसी का दर्जा मिला हुआ है. नरेंद्र मोदी इसी घांची जाति के हैं.

गुजरात कांग्रेस के नेता शक्ति सिंह गोहिल ने मोदी पर आरोप लगाया था कि वह पिछड़ी जाति के नही हैं.

गोहिल के अनुसार, मोदी 2001 में मुख्यमंत्री बने और राजनीतिक लाभ लेने के लिए 2002 में अपनी जाति को पिछड़ी जाति में डाल दिया.

गोहिल ने गुजरात सरकार के 2002 के एक सर्कुलर का हवाला देते हुए आरोप लगाया था कि मोदी ने मुख्यमंत्री बनने के बाद अपनी जाति को ओबीसी श्रेणी में शामिल कराने के लिए जोड़तोड़ की थी.

उस समय गोहिल ने बीबीसी को बताया था कि उन्होंने यह पता लगाने के लिए एक आरटीआई याचिका दायर की थी कि घांची जाति को राज्य की ओबीसी सूची में कब लाया गया था.

गोहिल के अनुसार, "मोदी गुजरात राज्य के अमीर और समृद्ध मोढ घांची जाति से हैं. इस बिरादरी को मोदी के मुख्यमंत्री बनने से पहले ओबीसी सूची में कभी शामिल नहीं किया गया था."

गोहिल के मुताबिक, "मोदी ने गुजरात सरकार की व्यवस्था को अपने फ़ायदे के लिए बदला है. मोढ घांची समाज को ओबीसी सूची में डालने की कभी कोई मांग नही थीं पर ख़ुद को पिछड़ी जाति का बताकर वोट बैंक की पॉलिटिक्स कर सकें इसलिए उन्होने ख़ुद को पिछड़ा बना दिया."

बीबीसी हिंदी के पास एक जनवरी, 2002 को गुजरात सरकार की ओर से जारी किया गया वह पत्र है जिसमें मोढ घांची को ओबीसी सूची में शामिल करने की घोषणा की गई थी.

कांग्रेस के आरोप के जवाब में गुजरात सरकार ने दो दशक पुरानी एक अधिसूचना का ज़िक्र किया जो कहती है कि मोढ घांची (तेली) जाति को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया है.

राज्य सरकार के प्रवक्ता नितिन पटेल के मुताबिक, "गुजरात सरकार के समाज कल्याण विभाग ने 25 जुलाई 1994 को एक अधिसूचना जारी की थी जो 36 जातियों को ओबीसी श्रेणी में शामिल करती थी और इसमें संख्या 25 (ब) में मोढ घांची जाति का ज़िक्र है, इस जाति को ओबीसी में शामिल किया गया है."

कौन हैं मोढ घांची?
घांची जिन्हें अन्य राज्यों में साहू या तेली के नाम से जाना जाता है. ये पुश्तैनी तौर पर खाद्य तेल का व्यापार करने वाले लोग हैं. गुजरात में हिंदू और मुस्लिम दो धर्मों को मानने वाले घांची हैं.

इनमें से उत्तर पूर्वी गुजरात में मोढेरा से ताल्लुक रखने वालों को मोढ घांची कहा जाता है. गुजरात के गोधरा हत्याकांड में पकड़े गए ज़्यादातर लोग घांची मुसलमान थे.

जाने-माने सामाज विज्ञानी अच्युत याग्निक का कहना है कि 'यह कहना ग़लत होगा कि मोदी एक फ़र्ज़ी ओबीसी हैं.'

उन्होंने कहा, "कांग्रेस का आरोप इसलिए ग़लत है क्योंकि घांची हमेशा से ही ओबीसी सूची में आते हैं. मोदी जिस जाति से हैं वह घांची की ही एक उपजाति है. इसलिए वह ओबीसी सूची में कहलाएँगे."

घनश्याम शाह ने कहा, "गुजरात में घांची समाज राज्य के सभी हिस्सों में फैला हुआ है. इसका एक हिस्सा मोढेरा सूर्य मंदिर के आस-पास के इलाकों में है जिसे मोढ घांची कहते हैं."

पर सवाल यह है कि अगर मोदी की जाति ओबीसी सूची में आती थी तो फिर सरकार ने 2002 में यह परिपत्र क्यों जारी किया?

अपना नाम दिए जाने से इनकार करते हुए गुजरात सरकार के एक सीनियर अधिकारी ने बीबीसी हिंदी को बताया था, "समस्या यह थी कि जब घांची समाज को ओबीसी सूची में डाला तब उसकी सभी उपजाति को भी उसमें शामिल कर देना चाहिए था. पर ऐसा नही हुआ. इसलिए गुजारत सरकार ने एक नया परिपत्र जारी करके मोढ घांची का उसमें शामिल कर लिया."

Wednesday, April 10, 2019

电视真人秀,如何使卡戴珊姐妹成为百万富翁

美国一档真人秀节目《与卡戴珊同行》(Keeping Up with the Kardashians)最新的第16季开播,不仅意味着卡戴珊一家的日常喜怒哀乐将再次一览无余地展示给观众,而且也意味着卡戴珊姐妹的各种商品也将再次吸引顾客的眼线。

这档真人秀电视系列节目转眼已经开播10年有余,卡戴珊一家的财富也随之暴涨。

刚满21岁——节目开播时年仅9岁的卡戴珊家小妹凯莉•詹娜( Kylie Jenner )竟然跻身亿万富翁行列。

根据《福布斯杂志》公布的信息,凯莉身价已达10亿美元,成为真人秀明星卡戴珊家族中首富,而她的姐妹们也并不落魄,借着这档真人秀的东风,她们个个都已身家百万。

在一个追求网红的时代,卡戴珊姐妹利用电视和网络的影响竭力发展商业王国,显然她们成功了。卡戴珊姐妹在网络上的粉丝加在一起共有5.37亿之多,她们的影响力促进了她们各自商业王国的拓展和繁荣。

斯拉克斯大学( Syracuse University )企业学教授亚历山大•麦克科尔维( Alexander McKelvie)认为,这档电视真人秀的内容都经过精心策划。

“如果你分析这档节目,你开始会以为这是一个真人秀。但其实它更像是经过策划的,有故事提纲的节目,它向观众精心提供一定的信息,这些信息都是节目制作人和卡戴珊家族想要向观众传达的。”

卡戴珊们如何赚得百万?
本季的真人秀《与卡戴珊同行》聚焦在科勒•卡戴珊卷入的一个"丑闻"中 - 她的一个前男友据称与妹妹凯莉的一个闺密乔丁•伍兹( Jordyn Woods )有染。

在真人秀中,科勒抱怨说:“这件事搞得那么公开,真让人生气!我不能天天生活在电视上!”

而就在这期节目播出前后,凯莉与乔丁合作的一款口红品牌降价一半,很快就告售罄。

尽管凯莉在美国媒体采访中否认这是有意为之。事实是,真人秀中的“丑闻”继续发展了。

在那期节目中,观众还看到科勒正在为她的牛仔装公司做宣传,金和凯莉在一起讨论合作研发一款香水,金的丈夫说唱歌手坎耶•韦斯特( Kanye West)也参加进来谈起他自己的项目。似乎是巧合,大姐考特妮也在这时发起了她个人的生活方式博客网站 Poosh。

卡戴珊姐妹的绝大多数商业项目都是在社交网站Instagram 公布的,可以说,这个社交网站更是年轻的凯莉•詹娜商业成功的关键因素。

分析人士认为,她们利用社交网站上拥有无数追随者的商机,创立受到“粉丝”喜欢的品牌。凯莉的化妆品牌就是最好的例子。

2015年11月,当凯莉首次通过她的Instagram 帐号发布自己创立的口红品牌时,数以百万计的“粉丝”通过她的帐号直接购买,也就是说,她由此免除了市场经营成本,并直接得到用户对商品的反馈。

北卡罗来那州立大学企业学教务长助理路易斯•什茨(Lewis Sheats)说:“想想20年前,一个企业家想从20个客户那里得到反馈,他可能不得不邀请他们面谈,或将产品送给客户试验使用,他们也可能不得不站在街口询问路人。而今天在社交网站上,一个产品或仅仅是商业想法,他们就可能在几秒钟之内得到数以千计顾客的反馈。”

Tuesday, April 2, 2019

河南23名幼儿食物中毒事件:幼儿园被查封 投毒教师被拘

  中新社郑州4月2日电 (记者 李贵刚)河南焦作一幼儿园23名幼儿食物中毒事件有了最新进展,焦作市解放区政府新闻办公室2日通报称,涉事幼儿园已被查封,投毒教师已被刑拘。

  据此前媒体报道称,3月底,河南焦作解放区“萌萌学前教育(幼儿园)”部分幼儿就餐后发生呕吐、晕厥等情况。

  事发后,当地警方4月1日通报该园幼儿食物中毒系该园教师投毒所致。

  当地官方2日通报详情称,该园有大、中、小三个班共64名幼儿,发生中毒的均为中班幼儿。3月27日上午,该园对幼儿进行例行加餐,加餐食品为自行加工的八宝粥,约20分钟后,中班24名幼儿中有23人(1人未就餐)出现呕吐等情况,先后送医就诊。

  经全力救治,目前,23名幼儿除1名症状较重送至郑州救治外,还有6名儿童留院观察治疗,其他幼儿已陆续出院。同时,当地对该园64名幼儿进行分流,55名幼儿明确分流意向,其中16人已入园就读。

  当地警方2日通报称,由于该园教师和负责人需要配合案件调查和侦办,该园已被警方查封。经初步侦查,该事件系该园教师王某投放亚硝酸钠所致,王某已被刑事拘留。

  据悉,4月1日,河南省政府办公厅印发了《河南省城镇小区配套幼儿园和无证幼儿园专项治理工作方案》。该方案要求,今年8月底前,各地对规定期限内未整改或整改后仍达不到基本办园条件而继续办园的,以及收到非法办学告知书后仍然招生的幼儿园,将依法进行强制查封。(完)

  二是开展实践指导。开展志愿服务、主题展览、团体职业指导等实践活动,组织失业青年参观人力资源市场、技工院校和企业园区,增强职业认知。对有求职意愿的青年开展一次职业素质测评,量身定制一份“就业启航计划书”,帮助合理确定职业定位,积极就业。

  三是提升就业能力。将有培训意愿的失业青年组织到职业技能提升行动中,有针对性地提供培训项目,使之至少掌握一种专项技能。对希望接受技能教育的,推荐就读职业院校、技工院校。对缺乏工作经历的,提供就业见习机会,提升岗位适应能力。

  四是扶持自主创业。组织有创业意愿的失业青年参观创业园区、孵化基地、众创空间,感受创业氛围。开展创业创新培训,帮助提升创业能力。为符合条件的失业青年提供创业担保贷款、一次性创业补贴、场租补贴等支持。

  五是实施托底帮扶。将建档立卡贫困家庭、城乡低保家庭、零就业家庭和残疾失业青年作为重点援助对象,提供专门的职业指导和心理咨询服务,组织专场招聘活动,优先向企业推荐。开展调查回访,跟踪了解就业情况、工作生活难题、意见诉求等,积极帮助解决,促进稳定就业。

存款降不降息?央行最新回应:“压舱石”要长期保留

  中新社北京4月10日电 (记者 魏晞)中国央行 欧盟财长们已 色情性&肛交集合 同意向遭受新冠 色情性&肛交集合 病毒大流行打击的欧洲国家提供 色情性&肛交集合 5000亿欧元 色情性&肛交集合 (4400亿英镑;  色情性&肛交集合 5460亿美元) 色情性&肛交集合 的...