मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कांग्रेस विधायकों द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को अपना नेता बताए जाने को लेकर नाराजगी जाहिर की। कुमारस्वामी ने कहा, ''कांग्रेस नेता अपनी लाइन क्रॉस कर रहे हैं। कांग्रेस को उन्हें काबू करना चाहिए। नहीं तो मैं इस्तीफा देने के लिए तैयार हूं। कांग्रेस नेताओं को इस मामले को देखना चाहिए, मैं इसके लिए जवाबदेह नहीं हूं।''
कुमारस्वामी के बयान पर कांग्रेस नेता और उप-मुख्यमंत्री जी परमेश्वर ने कहा, "सिद्धारमैया एक अच्छे मुख्यमंत्री रहे हैं। वे हमारे विधायक दल के नेता हैं। विधायकों के लिए अभी भी वही मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने अपनी राय व्यक्त की है, इसमें क्या गलत है? हम कुमारस्वामी के साथ खुश हैं।''
'गठबंधन सरकार ने अब तक कुछ नहीं किया'
सिद्धारमैया के समर्थकों और कुछ कांग्रेसी विधायकों ने रविवार को एक कार्यक्रम में कहा था कि वे अभी भी उन्हें अपना मुख्यमंत्री मानते हैं। इस मौके पर कांग्रेस विधायक एसटी सोमशेखर ने कहा था, ''गठबंधन की सरकार को 7 महीने हो चुके हैं लेकिन विकास के नाम पर कुछ नहीं हुआ। अगर सिद्धारमैया पांच साल और मुख्यमंत्री रहते तो सही मायनों में विकास देखने को मिलता।''
सिद्धारमैया ने कहा- मुझसे जलने वालों ने मेरी हार की योजना बनाई
सामाजिक कल्याण मंत्री सी पुत्तरंगा शेट्टी ने कहा था, "कोई कुछ भी कहें, सिर्फ सिद्धारमैया ही मेरे मुख्यमंत्री हैं। मैं किसी और को उस पद पर कल्पना नहीं कर सकता।'' कार्यक्रम में सिद्धारमैया ने कहा था, "मेरे विरोधियों में मुझे हराया। मुझे बदनाम करने के लिए आंदोलन चलाया गया। जो लोग मुझसे जलते थे, उन्होंने मेरी हार की योजना बनाई।''
बिहार : मौसम साफ, लुढ़का तापमान
राज्य के अधिकांश क्षेत्रों में सोमवार को मौसम साफ रहा। पटना में सोमवार को न्यूनतम तापमान 13.5 डिग्री सेल्सियस, भागलपुर में 12.6 डिग्री, गय में 13.6 डिग्री और पूर्णिया में 14.5 डिग्री दर्ज किया गया। मौसम विभाग के मुताबिक, "‘अगले एक-दो दिन में पटना समेत राज्य के अधिकांश क्षेत्रों में मौसम साफ रहेगा और तापमान में गिरावट दर्ज की जाएगी। इस दौरान ठंडी हवा भी चलेगी।’’
मध्यप्रदेश : हल्की बौछारों का अनुमान
पहाड़ों पर हुई बर्फबारी का असर मैदानी राज्यों में देखने को मिल रहा है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश में सर्द हवाओं से ठिठुरन बढ़ गई। रविवार को मध्यप्रदेश में धार सबसे ठंडा रहा। यहां तापमान 4.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। मौसम विभाग ने अगले 2 दिनों में कुछ स्थानों पर हल्की बौछारें पड़ने का अनुमान जताया है।
Monday, January 28, 2019
Thursday, January 17, 2019
मध्य प्रदेश: बीजेपी के बाद अब कांग्रेस को आया गाय पर प्यार
सड़कों पर इधर-उधर बड़ी तादाद में नज़र आने वाली गायों के लिए मध्यप्रदेश में बुधवार को एक बड़े अभियान की शुरुआत की गई.
प्रदेश में 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में लौटी है और अब वह भी भाजपा की राह पर चलकर गायों को लेकर काफ़ी संवेदनशील नज़र आ रही है.
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पहले ही कहा था कि वह 'किसी भी सूरत में गौ माता को सड़कों पर नहीं देखना चाहते हैं.' यही वजह है कि अब सरकार के विभिन्न महकमों ने इसकी शुरुआत की है कि सड़कों पर गाय और अन्य मवेशी नज़र ना आएं.
मध्यप्रदेश के पशुपालन मंत्री लाखन सिंह यादव ने नगर निगम को हिदायत दी थी कि इस अभियान के बाद अगर सड़कों पर गाय नज़र आती हैं तो निगम अमले के ख़िलाफ ही कार्रवाई की जाएगी.
लाखन सिंह यादव ने कहा, "मुख्यमंत्री की मंशा के मुताबिक़ सड़कों पर अब मवेशी नज़र नहीं आने चाहिए, इसलिये यह अभियान छेड़ा गया है."
वहीं, राजधानी भोपाल में नगर निगम अमला मवेशियों को पकड़ने के लिए लग गया है.
भोपाल के महापौर अलोक शर्मा ने बताया, "हमनें आवारा पशुओं को पकड़ने के लिए कारवाई शुरू कर दी है. इसके लिए कई टीमें बनाई गई हैं. साथ ही नोडल अधिकारी भी बनाए गए हैं. पशुओं को पकड़कर गोशाला ले जाया जाएगा."
उन्होंने बताया कि इसके लिए सरकार ने कुछ स्थान भी चिन्हित किए हैं ताकि वहां पर भी गायों को रखा जा सके.
हालांकि, इस मामले पर अब राजनीति भी प्रदेश में तेज़ हो गई है. भाजपा का कहना है कि उन्होंने गायों के लिए हर संभव काम किया. लेकिन गायों को आवारा कहने पर भी भाजपा को आपत्ति है.
प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय कहते हैं, "इसके लिए अगर सरकार कुछ करती है तो यह अच्छी बात है लेकिन सरकार को इस काम में दिखावा नहीं करना चाहिए. वहीं गायों को आवारा कहना भी ग़लत है."
कांग्रेस प्रवक्ता सरकार का बचाव करते हुए कहते हैं कि सरकार गायों को लेकर गंभीर है और गायों के संरक्षण के लिए सही काम करेगी जो अभी तक पिछली सरकार ने नहीं किया.
काग्रेंस प्रवक्ता भूपेंद्र सिंह कहते हैं, "हमारी सरकार गौ माता की रक्षा करेगी और उनका विस्थापन किया जाएगा. गांवों में सरकार ने गोशाला खोलने का फैसला किया है."
उन्होंने यह भी कहा कि गायों के सड़कों पर आने से जनहानि भी होती है और नुक़सान भी. इसलिए यह क़दम उठाया जाना ज़रूरी है.
लेकिन, भोपाल जैसे शहर में ही दावा किया जा रहा है कि पांच हज़ार से भी ज़्यादा मवेशी सड़कों पर घूम रहे हैं. लिहाज़ा इन्हें कांजी हाउस और गोशाला में पहुंचाना भी आसान काम नहीं है.
हालांकि, निगम दावा कर रहा है कि यह काम वह आसानी से कर लेगा. भोपाल नगर निगम कमिश्नर कहते हैं, "हमारे पास 1500 आवारा मवेशियों को रखने की जगह है. हमने जो सर्वे कराया है, उसके मुताबिक़ 3000 आवारा मवेशी हैं. लेकिन, हमें सही आंकड़ा आगे पता चलेगा. इनके लिए व्यवस्था की जा रही है."
लेकिन, प्रदेश के दूसरे स्थानों में हालत बहुत ही ज्यादा ख़राब है. प्रदेश के कई हाइवे ऐसे हैं जिन पर गायों का डेरा देखा जा सकता है. इसकी वजह से कई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं.
वहीं, गायों को लेकर सरकार के क़दम को विश्लेषक राजनीतिक नज़र से भी देख रहे है. चुनाव से पहले अपने वचन पत्र में कांग्रेस ने कई वादे गायों के लेकर किए थे. कांग्रेस के बारे में माना जा रहा था कि वह हिंदुओं से दूर होती जा रही है. इसी वजह से कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में ऐसे कई वादे किए थे ताकि हिंदुओं को क़रीब ला सके.
विश्लेषक मनोज कुमार कहते हैं, " गायों को लेकर यह एक बड़ी समस्या तो है. यह पूरे प्रदेश में देखी जा सकती है लेकिन यह क़दम इसलिए उठाया जा रहा है ताकि इसका फ़ायदा लोकसभा चुनाव में उठाया जा सके. इससे कांग्रेस को हिंदुओं को अपने क़रीब लाने का मौका मिलेगा."
प्रदेश में 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में लौटी है और अब वह भी भाजपा की राह पर चलकर गायों को लेकर काफ़ी संवेदनशील नज़र आ रही है.
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पहले ही कहा था कि वह 'किसी भी सूरत में गौ माता को सड़कों पर नहीं देखना चाहते हैं.' यही वजह है कि अब सरकार के विभिन्न महकमों ने इसकी शुरुआत की है कि सड़कों पर गाय और अन्य मवेशी नज़र ना आएं.
मध्यप्रदेश के पशुपालन मंत्री लाखन सिंह यादव ने नगर निगम को हिदायत दी थी कि इस अभियान के बाद अगर सड़कों पर गाय नज़र आती हैं तो निगम अमले के ख़िलाफ ही कार्रवाई की जाएगी.
लाखन सिंह यादव ने कहा, "मुख्यमंत्री की मंशा के मुताबिक़ सड़कों पर अब मवेशी नज़र नहीं आने चाहिए, इसलिये यह अभियान छेड़ा गया है."
वहीं, राजधानी भोपाल में नगर निगम अमला मवेशियों को पकड़ने के लिए लग गया है.
भोपाल के महापौर अलोक शर्मा ने बताया, "हमनें आवारा पशुओं को पकड़ने के लिए कारवाई शुरू कर दी है. इसके लिए कई टीमें बनाई गई हैं. साथ ही नोडल अधिकारी भी बनाए गए हैं. पशुओं को पकड़कर गोशाला ले जाया जाएगा."
उन्होंने बताया कि इसके लिए सरकार ने कुछ स्थान भी चिन्हित किए हैं ताकि वहां पर भी गायों को रखा जा सके.
हालांकि, इस मामले पर अब राजनीति भी प्रदेश में तेज़ हो गई है. भाजपा का कहना है कि उन्होंने गायों के लिए हर संभव काम किया. लेकिन गायों को आवारा कहने पर भी भाजपा को आपत्ति है.
प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय कहते हैं, "इसके लिए अगर सरकार कुछ करती है तो यह अच्छी बात है लेकिन सरकार को इस काम में दिखावा नहीं करना चाहिए. वहीं गायों को आवारा कहना भी ग़लत है."
कांग्रेस प्रवक्ता सरकार का बचाव करते हुए कहते हैं कि सरकार गायों को लेकर गंभीर है और गायों के संरक्षण के लिए सही काम करेगी जो अभी तक पिछली सरकार ने नहीं किया.
काग्रेंस प्रवक्ता भूपेंद्र सिंह कहते हैं, "हमारी सरकार गौ माता की रक्षा करेगी और उनका विस्थापन किया जाएगा. गांवों में सरकार ने गोशाला खोलने का फैसला किया है."
उन्होंने यह भी कहा कि गायों के सड़कों पर आने से जनहानि भी होती है और नुक़सान भी. इसलिए यह क़दम उठाया जाना ज़रूरी है.
लेकिन, भोपाल जैसे शहर में ही दावा किया जा रहा है कि पांच हज़ार से भी ज़्यादा मवेशी सड़कों पर घूम रहे हैं. लिहाज़ा इन्हें कांजी हाउस और गोशाला में पहुंचाना भी आसान काम नहीं है.
हालांकि, निगम दावा कर रहा है कि यह काम वह आसानी से कर लेगा. भोपाल नगर निगम कमिश्नर कहते हैं, "हमारे पास 1500 आवारा मवेशियों को रखने की जगह है. हमने जो सर्वे कराया है, उसके मुताबिक़ 3000 आवारा मवेशी हैं. लेकिन, हमें सही आंकड़ा आगे पता चलेगा. इनके लिए व्यवस्था की जा रही है."
लेकिन, प्रदेश के दूसरे स्थानों में हालत बहुत ही ज्यादा ख़राब है. प्रदेश के कई हाइवे ऐसे हैं जिन पर गायों का डेरा देखा जा सकता है. इसकी वजह से कई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं.
वहीं, गायों को लेकर सरकार के क़दम को विश्लेषक राजनीतिक नज़र से भी देख रहे है. चुनाव से पहले अपने वचन पत्र में कांग्रेस ने कई वादे गायों के लेकर किए थे. कांग्रेस के बारे में माना जा रहा था कि वह हिंदुओं से दूर होती जा रही है. इसी वजह से कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में ऐसे कई वादे किए थे ताकि हिंदुओं को क़रीब ला सके.
विश्लेषक मनोज कुमार कहते हैं, " गायों को लेकर यह एक बड़ी समस्या तो है. यह पूरे प्रदेश में देखी जा सकती है लेकिन यह क़दम इसलिए उठाया जा रहा है ताकि इसका फ़ायदा लोकसभा चुनाव में उठाया जा सके. इससे कांग्रेस को हिंदुओं को अपने क़रीब लाने का मौका मिलेगा."
Wednesday, January 9, 2019
आख़िर कितने चरमपंथियों ने किया था पठानकोट पर हमला
आज से ठीक तीन साल पहले भारतीय वायुसेना के पठानकोट सैन्य बेस पर चरमपंथियों ने हमला बोला था.
जवाबी कार्रवाई में वायुसेना ने चरमपंथियों के मंसूबों को कुचलते हुए अपने अभियान को अंजाम दिया.
पठानकोट वायुसेना अड्डे पर हुए इस हमले में कुल आठ लोगों की जानें गई थी.
उस जवाबी कार्रवाई में शामिल रहे एयर मार्शल एसबी देव हाल ही में वायुसेना के उप प्रमुख के पद से रिटायर हुए हैं.
सवालः पठानकोट चरमपंथी हमले को तीन साल पूरे होने वाले हैं, आप उस अभियान में शामिल रहे थे. आपको आज भी इस ऑपरेशन से जुड़ी कौन सी चीज़ याद है?
जवाबः हम जब किसी एयरफील्ड पर हमले की बात करते हैं तो इसके मायने ही बदल जाते हैं. पठानकोट वायुसेना अड्डा जम्मू-कश्मीर जैसे विवादित क्षेत्र में स्थित नहीं था. बल्कि पंजाब जैसे राज्य में स्थित है. और वायुसेना अड्डों की उस तरह सुरक्षा नहीं की जाती है जिस तरह देश की सीमाओं की सुरक्षा की जाती है.
इसकी वजह ये है कि वे हमारे ही देश में स्थित होते हैं. लेकिन वायुसेना के अड्डों को हवाई हमले की स्थिति से बचाने के लिए ज़रूरी इंतज़ाम किए जाते हैं. ऐसे में वायुसेना अड्डा एक आसान शिकार है.
लेकिन मुझे ये अब तक समझ नहीं आया कि सरकार इस मुद्दे को लेकर बचाव की मुद्रा में क्यों थी. इस अभियान को सही तरीक़े से अंजाम दिया गया था.
सवालः सरकार की किस प्रतिक्रिया से आपको लगा कि वे रक्षात्मक मुद्रा में हैं?
जवाबः मुझे ये सच में पता नहीं है. लेकिन उस दौरान मीडिया में एक मज़बूत अभियान चलाया गया जिसमें तीस साल पुरानी बातों की आलोचना की गई.
लोगों ने भारतीय वायुसेना के स्पेशल कमांडो फ़ोर्स 'गरुड़' के बारे में ग़लत बयानबाज़ी की. अगर इस सुरक्षाबल की क़ाबिलियत जाननी है तो भारतीय सेना से समझना चाहिए.
इस सुरक्षाबल ने अशोक चक्र, कीर्ति चक्र और शौर्य चक्र हासिल किया हैं. ऐसे में सरकार को रक्षात्मक मुद्रा में होने की ज़रूरत नहीं थी.
चलिए, अब बात करते हैं कि लेफ़्टिनेंट कर्नल निरंजन की. उन्हें जिस तरह से प्रेस में कवरेज मिली. वो राजद्रोह था. मैं कल्पना नहीं कर सकता था. अफ़वाहें उड़ाई गईं कि वह सेल्फ़ी ले रहे थे. इसके बाद गरुड़ टीम बेहद आहत थी. वे मेरे पास आए और उन्होंने मुझे मीडिया में छप रही तमाम ख़बरें दिखाईं और बताया कि किस तरह की स्टोरीज़ को प्रेस में लीक किया जा रहा है.
जवाबः बिल्कुल, मेरे मुताबिक़ सरकार को बचाव करने की मुद्रा में नहीं होना चाहिए था. पठानकोट में चरमपंथी हमले के बाद मज़बूती से जवाबी कार्रवाई की गई.
लेकिन एक वायुसेना अड्डा ऐसी जगह होती है जहां पर कई जगहों को निशाना बनाया जा सकता है. ऐसी जगह पर ईंधन और हवाई जहाज़ जैसी तमाम चीज़ें होती हैं जिन पर हमला किया जा सकता है. लेकिन हम सब कुछ बचाने में कामयाब रहे.
जवाबी कार्रवाई में वायुसेना ने चरमपंथियों के मंसूबों को कुचलते हुए अपने अभियान को अंजाम दिया.
पठानकोट वायुसेना अड्डे पर हुए इस हमले में कुल आठ लोगों की जानें गई थी.
उस जवाबी कार्रवाई में शामिल रहे एयर मार्शल एसबी देव हाल ही में वायुसेना के उप प्रमुख के पद से रिटायर हुए हैं.
सवालः पठानकोट चरमपंथी हमले को तीन साल पूरे होने वाले हैं, आप उस अभियान में शामिल रहे थे. आपको आज भी इस ऑपरेशन से जुड़ी कौन सी चीज़ याद है?
जवाबः हम जब किसी एयरफील्ड पर हमले की बात करते हैं तो इसके मायने ही बदल जाते हैं. पठानकोट वायुसेना अड्डा जम्मू-कश्मीर जैसे विवादित क्षेत्र में स्थित नहीं था. बल्कि पंजाब जैसे राज्य में स्थित है. और वायुसेना अड्डों की उस तरह सुरक्षा नहीं की जाती है जिस तरह देश की सीमाओं की सुरक्षा की जाती है.
इसकी वजह ये है कि वे हमारे ही देश में स्थित होते हैं. लेकिन वायुसेना के अड्डों को हवाई हमले की स्थिति से बचाने के लिए ज़रूरी इंतज़ाम किए जाते हैं. ऐसे में वायुसेना अड्डा एक आसान शिकार है.
लेकिन मुझे ये अब तक समझ नहीं आया कि सरकार इस मुद्दे को लेकर बचाव की मुद्रा में क्यों थी. इस अभियान को सही तरीक़े से अंजाम दिया गया था.
सवालः सरकार की किस प्रतिक्रिया से आपको लगा कि वे रक्षात्मक मुद्रा में हैं?
जवाबः मुझे ये सच में पता नहीं है. लेकिन उस दौरान मीडिया में एक मज़बूत अभियान चलाया गया जिसमें तीस साल पुरानी बातों की आलोचना की गई.
लोगों ने भारतीय वायुसेना के स्पेशल कमांडो फ़ोर्स 'गरुड़' के बारे में ग़लत बयानबाज़ी की. अगर इस सुरक्षाबल की क़ाबिलियत जाननी है तो भारतीय सेना से समझना चाहिए.
इस सुरक्षाबल ने अशोक चक्र, कीर्ति चक्र और शौर्य चक्र हासिल किया हैं. ऐसे में सरकार को रक्षात्मक मुद्रा में होने की ज़रूरत नहीं थी.
चलिए, अब बात करते हैं कि लेफ़्टिनेंट कर्नल निरंजन की. उन्हें जिस तरह से प्रेस में कवरेज मिली. वो राजद्रोह था. मैं कल्पना नहीं कर सकता था. अफ़वाहें उड़ाई गईं कि वह सेल्फ़ी ले रहे थे. इसके बाद गरुड़ टीम बेहद आहत थी. वे मेरे पास आए और उन्होंने मुझे मीडिया में छप रही तमाम ख़बरें दिखाईं और बताया कि किस तरह की स्टोरीज़ को प्रेस में लीक किया जा रहा है.
जवाबः बिल्कुल, मेरे मुताबिक़ सरकार को बचाव करने की मुद्रा में नहीं होना चाहिए था. पठानकोट में चरमपंथी हमले के बाद मज़बूती से जवाबी कार्रवाई की गई.
लेकिन एक वायुसेना अड्डा ऐसी जगह होती है जहां पर कई जगहों को निशाना बनाया जा सकता है. ऐसी जगह पर ईंधन और हवाई जहाज़ जैसी तमाम चीज़ें होती हैं जिन पर हमला किया जा सकता है. लेकिन हम सब कुछ बचाने में कामयाब रहे.
Wednesday, January 2, 2019
नरेंद्र मोदी क्या गुरदासपुर से फूँकेंगे चुनावी बिगुल?
लोकसभा चुनाव में कुछ महीने बाकी हैं, लेकिन उससे पहले ही पंजाब का गुरदासपुर राजनीतिक गहमा-गहमी के बीच चर्चा में है.
यहां से भारत-पाकिस्तान की सीमा करीब आधे घंटे की दूरी पर है और यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रैली करने जा रहे हैं.
ऐसा समझा जा रहा है कि वो आगामी चुनावों के मद्देनज़र यहीं से एनडीए के चुनावी अभियान का शंखनाद करेंगे और ये उनका लॉन्च पैड होगा.
मुख्य शहर से करीब दो किलोमीटर दूर होने वाली इस रैली की तैयारियां जोरों पर हैं. जगह-जगह होर्डिंग लगाए गए हैं. कई इसे मोदी की महा'रैली' बता रहे हैं तो कई धन्यवाद रैली कह रहे हैं.
अचानक एक रिक्शे से होने वाली घोषणा की ओर लोगों का ध्यान जाता हैः "आपके लिए बड़ी ख़बर है. पिछले 30 सालों में पहली बार कोई प्रधानमंत्री अपने शहर आ रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को यहां आएंगे, आप उन्हें सुनने ज़रूर आएं."
ज़िले के लोग भी प्रधानमंत्री की रैली को लेकर उत्सुक दिख रहे हैं. कई अपनी मांगों की सूची लेकर तैयार हैं तो कई को उम्मीद है कि वो वहां की स्थानीय समस्याओं पर बात करेंगे.
यहाँ कई लोगों का मानना है कि उनका ज़िला पिछड़ा है और उसे विकास की सख्त ज़रूरत है.
जोगिंदर सिंह नाम के एक दुकानदार ने कहा, "गुरदारपुर ज़िला मुख्यालय भले ही है पर उसके पास के दूसरे शहर बटाला और पठानकोट ज़्यादा बेहतर हैं."
वो कहते हैं कि ज़िले में उद्योग धंधों की कमी है और युवाओं को बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है. लोगों को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री क्षेत्र की बेहतरी और विकास के लिए कुछ घोषणा करेंगे.
ज़िले के एक किसान गुरनाम सिंह का कहना है कि यहां की सरकारों ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया, इसलिए वो भुखमरी से लड़ने के लिए मजबूर हैं.
वो कहते हैं, "हम चाहते हैं कि प्रधानमंत्री किसानों के कर्ज़माफी की घोषणा करें ताकि पंजाब के किसान राहत की सांस ले सके."
गुरनाम सिंह ड्रग्स की समस्या का भी जिक्र करते हैं. वो कहते हैं कि यहां के युवाओं के पास रोजगार नहीं है, इसलिए उन्हें ड्रग्स की लत से दूर रखना मुश्किल है.
विशेषज्ञों का कहना है कि गुरदासपुर से चुनावी अभियान की शुरुआत एनडीए गठबंधन के लिए राष्ट्रीय और स्थानीय, दोनों नज़रिये से कई मायनों में महत्वपूर्ण है.
सिख समुदाय यह मानता है कि करतारपुर कॉरिडोर उनके लिए किसी बड़े गिफ्ट से कम नहीं है.
हाल ही में भारत और पाकिस्तान ने इस कॉरिडोर के निर्माण पर सहमति जताई थी और इसका निर्माण भी दोनों तरफ से शुरू हो चुका है.
भारत के लोग अब आसानी से पाकिस्तान के करतारपुर साहिब पहुंच सकेंगे. इस कॉरिडोर की मांग सिख कई दशकों से कर रहे थे. करतारपुर साहिब से समुदाय का भावनात्मक जुड़ाव है.
प्रधानमंत्री मोदी जहां रैली करने जा रहे हैं, वो इलाक़ा कॉरिडोर से महज आधे घंटे की दूरी पर है. ऐसे में नरेंद्र मोदी के लिए यह एक बेहतर मौका साबित हो सकता है कि वो इसका क्रेडिट ले सकें और यह बता सकें कि केंद्र सरकार का इसमें क्या योगदान रहा है.
यहां से भारत-पाकिस्तान की सीमा करीब आधे घंटे की दूरी पर है और यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रैली करने जा रहे हैं.
ऐसा समझा जा रहा है कि वो आगामी चुनावों के मद्देनज़र यहीं से एनडीए के चुनावी अभियान का शंखनाद करेंगे और ये उनका लॉन्च पैड होगा.
मुख्य शहर से करीब दो किलोमीटर दूर होने वाली इस रैली की तैयारियां जोरों पर हैं. जगह-जगह होर्डिंग लगाए गए हैं. कई इसे मोदी की महा'रैली' बता रहे हैं तो कई धन्यवाद रैली कह रहे हैं.
अचानक एक रिक्शे से होने वाली घोषणा की ओर लोगों का ध्यान जाता हैः "आपके लिए बड़ी ख़बर है. पिछले 30 सालों में पहली बार कोई प्रधानमंत्री अपने शहर आ रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को यहां आएंगे, आप उन्हें सुनने ज़रूर आएं."
ज़िले के लोग भी प्रधानमंत्री की रैली को लेकर उत्सुक दिख रहे हैं. कई अपनी मांगों की सूची लेकर तैयार हैं तो कई को उम्मीद है कि वो वहां की स्थानीय समस्याओं पर बात करेंगे.
यहाँ कई लोगों का मानना है कि उनका ज़िला पिछड़ा है और उसे विकास की सख्त ज़रूरत है.
जोगिंदर सिंह नाम के एक दुकानदार ने कहा, "गुरदारपुर ज़िला मुख्यालय भले ही है पर उसके पास के दूसरे शहर बटाला और पठानकोट ज़्यादा बेहतर हैं."
वो कहते हैं कि ज़िले में उद्योग धंधों की कमी है और युवाओं को बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है. लोगों को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री क्षेत्र की बेहतरी और विकास के लिए कुछ घोषणा करेंगे.
ज़िले के एक किसान गुरनाम सिंह का कहना है कि यहां की सरकारों ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया, इसलिए वो भुखमरी से लड़ने के लिए मजबूर हैं.
वो कहते हैं, "हम चाहते हैं कि प्रधानमंत्री किसानों के कर्ज़माफी की घोषणा करें ताकि पंजाब के किसान राहत की सांस ले सके."
गुरनाम सिंह ड्रग्स की समस्या का भी जिक्र करते हैं. वो कहते हैं कि यहां के युवाओं के पास रोजगार नहीं है, इसलिए उन्हें ड्रग्स की लत से दूर रखना मुश्किल है.
विशेषज्ञों का कहना है कि गुरदासपुर से चुनावी अभियान की शुरुआत एनडीए गठबंधन के लिए राष्ट्रीय और स्थानीय, दोनों नज़रिये से कई मायनों में महत्वपूर्ण है.
सिख समुदाय यह मानता है कि करतारपुर कॉरिडोर उनके लिए किसी बड़े गिफ्ट से कम नहीं है.
हाल ही में भारत और पाकिस्तान ने इस कॉरिडोर के निर्माण पर सहमति जताई थी और इसका निर्माण भी दोनों तरफ से शुरू हो चुका है.
भारत के लोग अब आसानी से पाकिस्तान के करतारपुर साहिब पहुंच सकेंगे. इस कॉरिडोर की मांग सिख कई दशकों से कर रहे थे. करतारपुर साहिब से समुदाय का भावनात्मक जुड़ाव है.
प्रधानमंत्री मोदी जहां रैली करने जा रहे हैं, वो इलाक़ा कॉरिडोर से महज आधे घंटे की दूरी पर है. ऐसे में नरेंद्र मोदी के लिए यह एक बेहतर मौका साबित हो सकता है कि वो इसका क्रेडिट ले सकें और यह बता सकें कि केंद्र सरकार का इसमें क्या योगदान रहा है.
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